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====महाभारत, द्युतक्रीड़ा और धर्म ====== बचपन से सुना था कि धर्म शंकु की तरह नहीं होता जो उठता है और फिर गर्त में चला जाता है। धर्म चक्र की तरह होता है जो ऊपर उठता है, नीचे जाता है, फिर ऊपर उठता है। हर समाज के उत्थान-पतन-उत्थान की तरह धर्म का चक्र भी बदलता रहता है। और ये भी कि महाभारत काल से ही ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनो अपने स्थान से नीचे गिरते चले गये। वे पुनः उत्थान के दौर में कब आयेंगे यह आगे आने वाले समय की बात होगी। लम्बे अर्से बाद आज टेलीवीजन पर महाभारत देखते समय वही आभास हो रहा है। आज दौपदी का चीर हरण देख कर मन बहुत उद्विग्न हो उठा। सवेरे से ही मन उद्विग्न था महाराष्ट्र के पालघर की घटना (जिसमें दो साधुओं और एक वाहन चालक की भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दी थी) से। उस उद्विग्नता को और भी बढ़ा दिया महाभारत की घटना ने। क्रोध, विवशता, निराशा – सभी मन में उमड़ रहे हैं। समझ नहीं आ रहा कि वे भाव कैसे व्यक्त किये जायें। कैसा जड़ समाज था। द्रोण जैसा ब्राह्मण चुप था। भीष्म जैसा वीर पुरुष विवश था। युधिष्ठिर को धर्मराज कैसे कहा गया? समझ नहीं आता। कर्ण की दानवीरता का बखान बहुत होता ...
. ... आनेवाले साल को सलाम , जानेवाले साल को सलाम।.....  ====================================== आसमाँ की ऊँचाई पाना हममें से हर कोई चाहता है लेकिन उड़ान भरने लायक तैयारी कितने लोग कर पाते हैं, यह सोचने का विषय है। सभी की तमन्ना रहती ही है कि हर दृष्टि से हमारा कद, पद और प्रतिष्ठा बढ़े, हमारा व्यक्तित्व आसमान की ऊँचाइयां प्राप्त करे, और वह मुकाम पाए कि दुनिया में जहाँ कहीं पर हों, अपेक्षाकृत उच्च से उच्च स्थान पाते रहें और निरन्तर शीर्ष पर रहने का आनंद पाते रहें। यह शीर्ष बादलों और आसमान की तरह होना चाहिए जहाँ रहकर हम जमाने भर को देख भी सकें, आनंद भी पा सकें और दूसरों को आनंद से सरोबार भी कर सकें। अपना यह आनंद किसी का मोहताज न रहे, स्वेच्छा और संप्रभुता से हमें सब कुछ प्राप्त होता रहे। हम भी आनंदित होते रहें, औरों को भी जी भर कर आनंदित करते रहेंं। सभी को सामूहिक ऊँचाइयों को पाने के अवसर प्राप्त हों, किसी को किसी दूसरे से ईष्र्या या भय न रहे, सभी लोग अपने-अपने हिसाब से आगे बढ़ते रहें, काम करते रहें और दुनिया को वह सब कुछ दे सकें जिसके लिए हमारा अवतरण हुआ है। हर साल के आखिर...
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शहंशाह-ए-तरन्नुम' ============= हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्वगायकों में से एक थे पद्मश्री स्वर्गीय मुहम्मद रफी, जिन्होंने क़रीब 40 साल के फ़िल्मी गायन में 25 हज़ार से अधिक गाने रिकॉर्ड करवाए। अपनी आवाज़ की मधुरता और परास की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई थी। मुहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर, 1924 को अमृतसर ज़िला, पंजाब में हुआ था। रफ़ी साहब ने बहुत कम उम्र से ही संगीत में रुचि दिखानी शुरू कर दी थी। बचपन में ही उनका परिवार लाहौर आ गया था। रफ़ी के बड़े भाई उनके लिए प्रेरणा के प्रमुख स्रोत थे। रफ़ी के बड़े भाई की अमृतसर में नाई की दुकान थी और रफ़ी बचपन में इसी दुकान पर आकर बैठते थे। उनकी दुकान पर एक फ़कीर रोज आकर सूफ़ी गाने सुनाता था। सात साल के रफ़ी साहब को उस फ़कीर की आवाज़ इतनी भाने लगी कि वे दिनभर उस फ़कीर का पीछा कर उसके गाए गीत सुना करते थे। जब फ़कीर अपना गाना बंद कर खाना खाने या आराम करने चला जाता तो रफ़ी उसकी नकल कर गाने की कोशिश किया करते थे। वे उस फ़कीर के गाए गीत उसी की आवाज़ में गाने में इतने मशगूल हो जाते थे कि उनको पता ही ...
कुछ छोटी छोटी आदतें हैं जो मेरी है और शायद आपकी भी होनी चाहिये । ये बस इसलिये लिख रहा हूँ कि अगर आप ऐसा करते हो तो आपके लिये ढेर सारा प्यार और कोशिश करें वो जो ऐसा कर पाये । == सीढ़ी चढ़ते वक़्त अगर कोई बुज़ुर्ग धीरे धीरे चढ़ पा रहे हो सहारा ले के तो तेज़ आगे निकलने की जगह थोड़ा इंतज़ार कर लीजिए वो ख़ुद एक तरफ़ हट के आपको जाने को कहेंगे और उन्हें अच्छा लगेगा । ==अगर पता आपको कोई बुज़ुर्ग तेज़ सुनते हैं तो खुद ही पहली बार में ऊँचा और धीरे बोलें उनको देखते हुये उन्हें अंदर से बुरा न लगेगा कि एक बार में समझ नहीं पाते वो । ==कभी अगर बाज़ार में खुद के घर के या जान पहचान के कोई भले ही हल्के सामान को भी हाथों से पैदल ले जा रहें हो तो कोशिश करें वो सामान या हो पाये तो उन्हें घर तक पहुँचा दे । आपका थोड़ा वक्त जायेगा पर प्यार से उनका हाथ सर पे आयेगा ।     ==एक वक्त तय होता जब उन्हें चाय पीने या ...