"वो प्यार था या कुछ और था .."

"वो प्यार था या कुछ और था ..."

वो मुहल्ले के जवान छैल छबीले लड़के होते थे, जिनके ऊपर बारातियों को खिलाने की जिम्मेवारी हुआ करती थी। कमबख्त ये काम बस इस लिए ले लेते के आखिरी पंगत घर मुहल्ले और रिश्ते में आई लड़कियों की होती। ये थके हुए भी ऊर्जा से भरे होते। ये चाहते उनकी पंगत बैठते शारदा सिन्हा के गाने बजने लगे, ये चाहते बैठने की जगह को चौका की तरह पूरा जाए, ये चाहते घर के चाचा,भाई बस कहीं भी चले जाए पर इधर ना आएं। 

ये ऐसी जमीन पर चांदनी बिछाते कहां वो पैर रखती। फिर लड़कियां आती जैसे सौगात, जैसे जिंदगी में बसंत, जैसे देह पलाश के रंग रंग जाए लड़कियां दुप्पटे में मुंह छुपाए मुस्कुराती, लड़के पत्तल क्या बिछाते खुद बिछ जाते कढ़ाई की सबसे गरम गोल सुनहरी पुड़ियों का समय ये ऐसे पूड़ी उठा कर रखते जैसे दिल रख रहें हो। जबकि आंखें भी नहीं मिलती लेकिन इतने पास तो शायद ही कभी हो पाएंगे कसोरे में ज्यादा से ज्यादा बुनिया हर ना के बाद भी दही बूंदी के कसोरे भर दिए जाते  कुछ लड़कियां खास होती वैसे कुछ लड़के भी खास होते ये आपस के...

इशारे से हमारी वाली और उसकी वाली बांट लेते ये पंगत संगीत के बैठक की तरह होती जो खतम ना हो कभी की दुवाएं पढ़ी जाती  लड़कियां चिड़िया की तरह खा रही गिलहरी की तरह कुतर रही पूड़ी लड़के बाल्टियों में खाना लिए भाग- भाग इनके पास आ रहे दिल की बात यही कही जाय, आखिर रामबन वाली भाभी की बहन कल चली जायेगी तो लड़का खाली बाल्टी लिए ही घूम रहा मिनिट भर को ठहराता कहता सुनो कल चली जाओगी लड़की लाल हुई जा रही अपनी दीदी से मिलने जल्दी आया करो लड़की शरारत से कहती है बाल्टी में तरकारी है क्या? दो मुझे। लड़के की तो बाल्टी खाली है, लड़की जोर से हंसती है। 


ये पंगत लडको की उम्र बढ़ाने को है इशारे में उन्हें आल द बेस्ट बोलने के लिए एकदम नजदीक से लड़के के घुंघराले बालों में हाथ फेरने के लिए है यहीं कसोरे में दिल परोसे जा रहे पूरियों को फूंक कर दिया जा रहा है , और इन्हीं जूठी पत्तलों पर लड़कियां अपनी नाजुक उंगलियां छोड़ गई कुछ पत्तलों को लड़के ऐसे सहेज कर उठा रहे कुछ पत्तलों में बची हुई पूड़ी का टुकड़ा ऐसे नजर बचा कर खा ले रहे जैसे प्रसाद हो।  

यही कुछ लड़के भीड़ वाले चप्पल में अपनी वाली का चप्पल लिए साइड में खड़े हैं भीड़ के इसी छोर पर ये एक दूसरे की देह गंध के नजदीक है के मतवाले हुए जा रहे हैं और ऐसे में एक लड़की अपना मुंह पोंछा रूमाल किसी लड़के की मुठ्ठी में ठूस कर भागी जा रही है।  पंगत उठ गई है दीवाने थक गए हैं , घर के लोग चाहते हैं ये इतना काम किए लड़के मजे से खाएं, पर ये अनंत आनंद में हैं,  वो कौन लड़का था जो भाभी की बहन का जूठा पत्तल मोड़ कर छुपा लिया के बस इसी में खाना खायेंगे। 

पत्तल के जूठे में लड़की की शर्माती नजर है उसकी उंगलियों की छुवन है मन तो ऐसा की उसके एक उंगली को दांत से काट ले लड़का पर इस सोच से ही एक उफ्फ का जन्म है एक आह सी बिछड़न... 

"वो प्यार था या कुछ और था ...

न तुझे पता न मुझे पता 

ये निगाहों का ही क़ुसूर था 

न तेरी ख़ता न मेरी ख़ता"

नहीं जानते कि आने वाले दिन कैसे होंगे अच्छे... या फिर बहुत बुरे यह भी नहीं जानते कि हम जिंदा रहेंगे भी या नहीं —लेकिन फिर भी बीतें हुए दिनों के सुख का रंग हमारे चेहरों पर हमेशा बना रहेगा... जिसे हम अपने दुख के दिनों में भी देख सकेंगे अपने-अपने चेहरों पर।

🙏💖☺


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